सेंटर फॉर सेलुलर और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के डायरेक्टर राकेश मिश्रा ने कहा कि अभी हमारे पास कोरोना वायरस (Coronavirus) की कोई दवा नहीं है और न वैक्सीन है. इसके आने में शायद एक-दो साल लग जाएं. अभी देश में Covid-19 को लेकर ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करने की जरूरत है, टेस्ट कम हो रहे हैं. इसीलिए रिपोर्ट्स ज्यादा नहीं आ रहीं हैं, ज्यादा टेस्ट नहीं होंगे तो पता नहीं चलेगा कि यह वायरस कहां तक और कितने लोगों में फैला है. अभी घरों में रहना और एक दूसरे से दूरियां बनाए रखना है, तभी वायरस ज्यादा नहीं फैलेगा. अभी हमारे पास तेलंगाना के सभी जिलों की सरकारी अस्पतालों से सैंपल आ रहे हैं, हम उनकी जांच कर रहे हैं.
किस जानवार से आया वायरस यह पता लगाना जरूरी
राकेश मिश्रा ने कि वैज्ञानिक कारणों से ऐसा लगता है कि यह वायरस सबसे पहले चमगादड़ में आया, उसके बाद सीधा इंसानों में नहीं आया, बल्कि दूसरे जानवरों से इंसानों में आया है. अभी हमें यह ही पता लगाना है कि किस जानवर से इंसानों में यह वायरस प्रवेश किया, क्योंकि चीन में लोग कई तरह के जानवर खाते हैं. मामले बढ़ने की आशंका जताते हुए मिश्रा ने कहा कि घातक कोरोना वायरस के खात्मे के लिए किसी भी देश को दवा बनाने या टीका विकसित करने में कम से कम एक साल लग सकता है.
मास टेस्टिंग करना जरूरी
उन्होंने कहा कि हमें मास टेस्टिंग करनी होगी, संस्थान एक दिन में सैकड़ों नमूनों की जांच करने में समर्थ है. मिश्रा ने कहा, “मामलों में कमी आने का सवाल ही नहीं है. सभी संकेत दर्शा रहे हैं कि मामले बढ़ने जा रहे हैं. ये कहां तक जाएंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हमारा लॉकडाउन कितना प्रभावी रहता है.” उन्होंने आगे कहा, “चीन लोगों की गतिविधि नियंत्रित करने के कारण इससे बाहर निकल गया. कोई भी देश कम से कम एक साल से पहले टीका नहीं बना पाएगा. भारत को अपनी जांच क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि महामारी की सटीक स्थिति सामने आ सके.”
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राकेश मिश्रा ने बताया, CCMB ने मंगलवार से कोरोना वायरस के नमूनों की जांच शुरू कर दी. हमारे पास अभी सिर्फ तेलंगाना की सैंपल आए हैं, हमें अलग-अलग राज्यों और अलग देशों के सैंपल लेकर जांच करनी होगी, तभी इसका अंतर पता चलेगा, सभी देशों में जो फैला है वो वायरस एक ही है या इसमें अंतर है, इसकी स्ट्डी करनी है.
CCMB कर रहा टेस्ट किट का परीक्षण
CCMB के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने बताया कि “हम अपनी इनक्यूबेटिंग कंपनियों की मदद कर रहे हैं, जो परीक्षण किट विकसित करने का विचार लेकर आए हैं और हम उनका समर्थन भी कर रहे हैं. हम उनके प्रस्तावित जांच किट का परीक्षण और सत्यापन कर रहे हैं. जल्द ही हम कुछ अच्छे किट के साथ आ सकते हैं और अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह टेस्ट किट 2-3 सप्ताह में विकसित हो सकती है. परीक्षण किट के मामले में उसकी गुणवत्ता और सटीक नतीजे सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. यदि किट 100 प्रतिशत परिणाम देती है, तो उन्हें मंजूरी दी जाएगी.”
नई दवा बनने में लगेगा समय
वैक्सीन और दवा का विकास वायरस से लड़ने का एक अन्य पहलू हो सकता है, लेकिन अभी तक सीसीएमबी न तो वैक्सीन और न ही दवा के विकास पर काम कर रहा है. डॉ मिश्रा ने कहा, “हमारे पास इस पर काम करने के लिए विशेषज्ञता नहीं है. हालांकि, जब वायरस कल्चर किया जा रहा है, तो हम एक पद्धति विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि इसका उपयोग परीक्षण के लिए किया जा सके.” उन्होंने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा है कि “यह संभव है कि सीसीएमबी की आनुषांगिक संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (IICT) दवाओं के पुनर्निधारण के लिए काम कर रही हो क्योंकि नई दवा बनाना एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है.”